वैश्य चेतना मंच की चेतावनी पर सियासी भूचाल: भाजपा में विरोध की लहर
वैश्य मंच की हुंकार: “टिकट नहीं तो निर्दलीय सही” – रूपल आनंद को हर हाल में चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा
डिजिटल डेस्क, सीवान। कृष्ण मुरारी पांडेय
वैश्य चेतना मंच द्वारा भाजपा को खुली चेतावनी देते हुए कहा गया कि यदि पार्टी ने वैश्यों को टिकट देने में चूक की तो मंच रूपल आनंद को निर्दलीय मैदान में उतारने से पीछे नहीं हटेगा। मंच के प्रदेश संयोजक सुंदर साहू समेत राष्ट्रीय व प्रांतीय पदाधिकारियों के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
भाजपा का तीखा पलटवार: “वैश्य उम्मीदवारों का रिकॉर्ड खराब, सवर्ण समाज नहीं करेगा समर्थन” – सुमित भारद्वाज
भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के पूर्व जिला अध्यक्ष एवं जिला कार्यसमिति सदस्य सुमित भारद्वाज ने मंच के बयान को ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “यदि भाजपा रूपल आनंद को टिकट देती है, तो सवर्ण समाज विरोध में आ जाएगा। उनके जीतने की कोई संभावना नहीं है।”
इतिहास के हवाले से चेतावनी: 1990 से 2020 तक वैश्य प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहद कमजोर
भारद्वाज ने सिवान की चुनावी राजनीति का हवाला देते हुए बताया कि –
1990 में भाजपा ने वैश्य समाज के लोकप्रिय व्यवसायी स्व. भिर्गून प्रसाद को टिकट दिया था, पर उनकी जमानत जब्त हो गई थी। 2010 में जिम्मी, और 2020 में देवेंद्र प्रसाद गुप्ता ने चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों की भी जमानत जब्त हो गई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “ऐसे में रूपल आनंद को टिकट देना राजनीतिक आत्मघाती कदम होगा।”
अनुराधा गुप्ता का उदाहरण भी दिया: “वैश्य समाज का साथ नाममात्र का, पोलिंग एजेंट तक नहीं मिलते”
सुमित भारद्वाज ने पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष पद की प्रत्याशी अनुराधा गुप्ता का उदाहरण देते हुए कहा कि “उस चुनाव में भी वैश्य समाज के लोग साथ नहीं खड़े हुए। 100 से अधिक बूथों पर पोलिंग एजेंट तक नहीं मिले। आधे से भी कम वोट मिले थे।”
रूपल आनंद के परिवार का इतिहास भी उठा लाए: “2003 में परिवार के ही सदस्य को एमएलसी चुनाव में सिर्फ 5-7 वोट मिले थे”
उन्होंने रूपल आनंद के राजनीतिक परिवार पर भी सवाल उठाए और कहा कि “रूपल आनंद के ही परिवार से 2003 में एमएलसी चुनाव लड़ा गया था, जिसमें सिर्फ 5-7 वोट ही मिले थे। इससे समझा जा सकता है कि उनकी जमीनी पकड़ कितनी कमजोर है।”
अब, भाजपा और वैश्य चेतना मंच के बीच इस नए विवाद ने सिवान विधानसभा क्षेत्र की राजनीति को गर्मा दिया है। जहां एक ओर मंच जातीय प्रतिनिधित्व की बात कर रहा है, वहीं भाजपा का बड़ा धड़ा वैश्य उम्मीदवारों की हार के पुराने रिकॉर्ड को आधार बनाकर विरोध कर रहा है। अब देखना होगा कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व इस जातिगत दबाव और संगठनात्मक मतभेदों के बीच किस ओर रुख करता है।