कठपुतलियों से खुलेगा ज्ञान का दरवाज़ा
बिहार डेस्क केएमपी भारत। पटना
ओपी पांडेय। आरा। अब कक्षा में सिर्फ किताबें नहीं, रंग-बिरंगी कठपुतलियाँ भी बच्चों को पढ़ाएंगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत अब बच्चों को पढ़ाने का तरीका बदला जा रहा है। इसके तहत परंपरागत पुतलीकला को शिक्षा से जोड़ा जा रहा है। केंद्र सरकार के सांस्कृतिक स्रोत और प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी), नई दिल्ली द्वारा हाल में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में इसका प्रशिक्षण दिया गया।
इस कार्यशाला में देशभर से चुनिंदा शिक्षक शामिल हुए। बिहार से कुल 11 शिक्षकों को बुलाया गया, जिनमें भोजपुर की तीन महिला शिक्षिकाएं – पूजा कुमारी (उत्क्रमित मध्य विद्यालय, इसाढ़ी), याशिका (नव प्राथमिक विद्यालय, नयका टोला) और सुनैना कुमारी (बुढ़वल, जगदीशपुर) भी शामिल थीं।
अब शिक्षक नहीं, बच्चों के ‘सहयात्री’ होंगे
पूजा कुमारी बताती हैं, “यह कठपुतली एक ऐसा माध्यम है, जिससे हम बच्चों से सहज और जीवंत संवाद कर सकते हैं। यह रटाने की नहीं, समझाने और महसूस कराने की पद्धति है।” पूजा हाल ही में प्रधान शिक्षक के रूप में चयनित हुई हैं और जल्द ही जगवलिया में योगदान करेंगी।
कक्षा में कला के रंग
पाँच दिवसीय कार्यशाला में शिक्षकों को पुतली निर्माण, संवाद लेखन, कहानी मंचन और विषय आधारित प्रस्तुति की तकनीकें सिखाई गईं। बच्चों की जिज्ञासा कैसे जगाई जाए, यह भी सिखाया गया। कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी दिए गए।
शिक्षा में बदलाव की नई मिसाल
पहली बार किसी लोककला को औपचारिक शिक्षा में शामिल किया गया है। यह बदलाव दिखाता है कि अब शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि रचनात्मकता और समझ पर आधारित हो रही है — और इसमें ग्रामीण शिक्षक भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।