– अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा, 2015 में हुई थी सनसनीखेज वारदात
गवाही के दौरान अपहृत की पत्नी और परिजनों ने लगाया था आरोप कि खाद्य व्यापार में वर्चस्व की लड़ाई के कारण पूर्व विधान पार्षद मनोज सिंह भी इस साजिश में शामिल थे
सेंट्रल डेस्क l केएमपी भारत l पटना
सिवान | विधि संवाददाता
पचरुखी के चर्चित खाद्य व्यवसायी हरिशंकर सिंह अपहरण एवं हत्या मामले में शुक्रवार को बड़ा फैसला आया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तृतीय सह विशेष एमपी-एमएलए अदालत संतोष कुमार सिंह ने पूर्व विधान पार्षद मनोज सिंह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा।

2015 में हुई थी सनसनीखेज वारदात
15 नवंबर 2015 की सुबह पचरुखी निवासी खाद्य व्यवसायी हरिशंकर सिंह की मॉर्निंग वॉक के दौरान पचरुखी रेलवे स्टेशन से ही अपहरण कर लिया गया था। घटना के बाद क्षेत्र में हड़कंप मच गया। पहले अज्ञात के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई। बाद में परिजनों ने परिचित पप्पू सिंह पर शक जताया। पुलिस दबिश में पप्पू सिंह ने अपहरण व हत्या की बात स्वीकार की और अन्य आरोपियों के नाम बताए।
खेत से मिला था टुकड़ों में शव
पुलिस ने पप्पू सिंह की निशानदेही पर जामो थाना क्षेत्र के डुमरा छत्तीसी गांव से हरिशंकर सिंह का शव बरामद किया। शव को जमीन में दबा दिया गया था और टुकड़े-टुकड़े करने के लिए इस्तेमाल किए गए दाब व लकड़ी के गट्टे भी पुलिस ने जब्त किए। इस हत्याकांड में कुल 12 आरोपियों को नामजद किया गया।
मनोज सिंह को बाद में बनाया गया आरोपी
गवाही के दौरान अपहृत की पत्नी और परिजनों ने आरोप लगाया कि खाद्य व्यापार में वर्चस्व की लड़ाई के कारण पूर्व विधान पार्षद मनोज सिंह भी इस साजिश में शामिल थे। उनके बयानों के आधार पर पुलिस ने मनोज सिंह को पूरक आरोपपत्र में आरोपी बनाया। चूंकि वह जनप्रतिनिधि रहे हैं, इसलिए उनका मामला विशेष एमपी-एमएलए अदालत में स्थानांतरित किया गया।
अन्य अभियुक्तों को मिल चुकी है उम्रकैद
शेष अभियुक्तों के खिलाफ सेशन जज मनोज कुमार तिवारी की अदालत में सुनवाई हुई थी। अदालत ने सभी को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह मामला वर्तमान में पटना हाईकोर्ट में अपील के रूप में लंबित है।
अदालत ने दिया संदेह का लाभ
मनोज सिंह की ओर से अधिवक्ता अमित सिंह ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत या प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। केवल परिजनों के संदेह के आधार पर उन्हें अभियुक्त बनाया गया। जबकि विशेष लोक अभियोजक रघुवर सिंह और सहायक अभियोजक विपिन सिंह ने पुलिस जांच का हवाला देते हुए उनकी संलिप्तता बताई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ अपराध साबित करने में विफल रहा। लिहाजा संदेह का लाभ देते हुए मनोज सिंह को बरी कर दिया गया।