राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने मायानंद मिश्र के जीवन और लेखन यात्रा पर डाला प्रकाश, कहा – अब उनके जैसे लेखक और चिंतक संभव नहीं
बिहार डेस्क l केएमपी भारत l भागलपुर
सहरसा। विकाश कुमार
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और ईस्ट एन वेस्ट डिग्री कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “मैथिली साहित्य के तीन नक्षत्र – ललित, राजकमल चौधरी और मायानंद मिश्र” पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी रविवार को संपन्न हुई। यह आयोजन मैथिली साहित्य के इतिहास में एक यादगार पहल माना जा रहा है।
पहले दिन संगोष्ठी में ललित और राजकमल चौधरी के जीवन व रचनाओं पर आलेख प्रस्तुत हुए। वहीं दूसरे दिन का सत्र मैथिली साहित्य के मूर्धन्य लेखक मायानंद मिश्र को समर्पित रहा। अध्यक्षता विद्वान केदार कानन ने की और संचालन अभय मनोज व किशलय कृष्ण ने किया।
सत्र की शुरुआत में ईस्ट एन वेस्ट समूह के चेयरमैन डॉ. रजनीश रंजन ने पाग, चादर और प्रतीक चिह्न भेंट कर अध्यक्ष का स्वागत किया। डॉ. स्वेता भारती ने मिश्र की राजनीतिक कथाओं पर व्याख्यान दिया। साहित्यकार आशीष चमन ने उनके उपन्यास बिहारी पात पाथर में मिथिला के समाज, बाल विवाह और गरीबी के चित्रण पर चर्चा की।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष दमन कुमार झा ने मिश्र की हास्य रचना भांगक लोटा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका साहित्य मिथिला समाज का जीवंत दस्तावेज है। अंतिम सत्र में अमर उजाला के सह संपादक रमण कुमार सिंह की अध्यक्षता में कुमार सौरभ, कुमार विक्रमादित्य और मिश्र के पौत्र किशलय कश्यप ने उनके जीवन वृत्त, मनोविश्लेषण और ऐतिहासिक उपन्यासों पर प्रकाश डाला।
समापन भाषण में डॉ. रजनीश रंजन ने कहा— “माया बाबू ने मैथिली मंच हेतु आदर्श आचार संहिता की स्थापना की थी। उनके जैसा लेखक और चिंतक अब संभव नहीं है।”
इस अवसर पर प्राचार्य डॉ. नागेन्द्र कुमार झा, विष्णु स्वरूप, डॉ. प्रियंका पांडेय, सीमा धीया, रजनी खान और डॉ. संजय वशिष्ठ सहित कई विद्वान उपस्थित रहे।