प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में सिवान की पारंपरिक कला की भेंट, चित्रकार रजनीश की अनूठी प्रस्तुति

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सिवान, युवा चित्रकार रजनीश कुमार मौर्य ने प्रधानमंत्री मोदी को सिवान की पारंपरिक टेराकोटा कला से किया सम्मानित

प्रधानमंत्री मोदी ने रजनीश की कला की सराहना की, सिवान की पुरानी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पुनः स्थापित करने का किया प्रयास
सिवान की पारंपरिक मृणपात्र कला में था इतिहास, आज भी पटना म्यूजियम में संरक्षित

केएमपी भारत। सिवान: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिवान दौरे के दौरान शुक्रवार को युवा चित्रकार और चित्रकला शिक्षक रजनीश कुमार मौर्य ने प्रधानमंत्री को एक अद्भुत पारंपरिक भेंट दी। यह भेंट थी सिवान की प्राचीन टेराकोटा कला, जिसे मृणपात्र के रूप में प्रदर्शित किया गया। रजनीश ने इसे प्रधानमंत्री के सामने पेश करते हुए सिवान की कला के महत्व को उजागर किया और कला के विलुप्त होते रूप को पुनः राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का संकल्प लिया।

रजनीश कुमार मौर्य ने बताया कि सिवान में कभी मिट्टी के बर्तनों की कला अत्यधिक प्रसिद्ध थी, जिसमें बर्तन बनाने के बाद उन पर ज्यामितीय चित्रकारी की जाती थी। विशेष कपड़छन विधि से तैयार की गई मिट्टी का उपयोग कर इन्हें बनाना जाता था, और फिर इन बर्तनों को आग में तपाकर चमकदार बना दिया जाता था। सिवान की सुराही, जो सबसे प्रसिद्ध पात्र था, ने इसके निर्माण में विशेष पहचान बनाई थी। मौर्य ने बताया कि इस कला का इतिहास मुग़ल काल तक जाता है, जब ये बर्तन ईरान और फारस तक भेजे जाते थे। यहाँ तक कि ब्रिटेन तक सिवान के मिट्टी के बर्तन पहुंचे थे। हालांकि, आधुनिक युग में यह कला विलुप्त हो गई है।

पीएम मोदी ने किया रजनीश की कला का सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रजनीश से इस कला के बारे में विस्तार से पूछा और इसे बनाने की विधि के बारे में जानकारी ली। प्रधानमंत्री ने रजनीश के प्रयास की सराहना की और उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिए शुभकामनाएँ दी। मुख्यमंत्री ने भी रजनीश के इस प्रयास की जमकर तारीफ की।

पुरातत्त्व विभाग ने की टेराकोटा कला की पुष्टि
इतिहासकार और आराध्या चित्रकला केंद्र के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि भारतीय पुरातत्त्व विभाग ने सिवान के पचरूखी और जीरादेई प्रखंडों से टेराकोटा बर्तनों के प्रमाण प्राप्त किए हैं। इन बर्तनों का प्रमाण भारतीय पुरातत्त्व विभाग की रिपोर्ट में भी दर्ज किया गया है। डॉ. सिंह ने इसे ‘एनबीपीडब्ल्यू’ या कृष्ण मार्जित मृद भांड बताया, जो 700-200 ईसा पूर्व का समय दर्शाता है।

सिवान के इस इतिहास और कला को संरक्षित करने के लिए सिवान के प्रबुद्ध जन, चित्रकला शिक्षक और पुरातत्त्व विभाग के अधिकारी भी रजनीश की सराहना करते हुए उन्हें बधाई दी।

 

 

 

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