खुद के मृत होने की सूचना सुन फफक पड़ी रिटायर्ड शिक्षिका, BLO को नोटिस
बिहार डेस्क l केएमपी भारत l पटना
आरा। ओपी पांडेय
लोकतंत्र की जड़ें तभी मजबूत होती हैं जब हर नागरिक को वोट का अधिकार मिले। लेकिन आरा में सामने आए एक मामले ने इस अधिकार पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। 74 वर्षीय रिटायर्ड शिक्षिका मेरी टोप्पो को चुनाव आयोग की लापरवाही का शिकार होना पड़ा। मतदाता सूची में उन्हें ‘मृत’ घोषित कर दिया गया और उनके तीनों बेटों का भी नाम सूची से हटा दिया गया।
“मैं सामने बैठी हूं, फिर भी मुझे मृत बता दिया”
पूर्व मोंटेसरी शिक्षिका मेरी टोप्पो जब यह सुनती हैं कि उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है तो उनकी आंखें भर आती हैं। वह कहती हैं—
“मैं जिंदा हूं, सामने बैठी हूं… लेकिन सरकार ने मुझे मृत बता दिया। यह सिर्फ मेरा नहीं, लोकतंत्र का अपमान है।”
पूरे परिवार का नाम गायब
मेरी टोप्पो के बेटे—
- चंदन टोप्पो (दिल्ली में नौकरी),
- आलबर्ट (वाराणसी में काम, सूची में नाम ‘आलबीटु’),
- क्लारेंस टोप्पो (आरा निवासी)
का नाम भी मतदाता सूची से काट दिया गया। क्लारेंस ने कहा कि न तो बीएलओ ने संपर्क किया, न सत्यापन किया और अचानक वोट देने का अधिकार छीन लिया।
दोस्त ने बताई हकीकत, वार्ड कमिश्नर बोले— “उम्र हो गई थी, मर गई होंगी”
क्लारेंस के दोस्त अभिषेक द्विवेदी ने बताया कि मामला यादव विद्यापीठ प्लस टू हाई स्कूल के बूथ संख्या 223 का है। जब उन्होंने सूची देखी तो टोप्पो परिवार का नाम गायब पाया। बीएलओ विनोद कुमार यादव ने कहा— “ट्रेस नहीं हो पाया, इसलिए नाम काट दिया।” वहीं वार्ड कमिश्नर का बीएलओ को दिया गया जवाब चौंकाने वाला था— “ मैने सोचा ज्यादा उम्र हो चुकी है, मर गई होंगी।”
लोकतंत्र पर गहरी चोट
मेरी टोप्पो पिछले 50 साल से आरा में रह रही हैं और हर चुनाव में मतदान करती रही हैं। अब अचानक मृत घोषित कर देना और परिवार का नाम काट देना न सिर्फ व्यक्तिगत अपमान है बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी गहरी चोट है।
बड़े सवाल
- क्या बिना सत्यापन किसी जीवित मतदाता को मृत घोषित किया जा सकता है?
- मतदाता सूची की प्रक्रिया इतनी कमजोर क्यों है?
- अगर पढ़ी-लिखी शिक्षिका और उनका परिवार शिकार हो सकता है तो आम नागरिकों का क्या होगा?