बिहार : स्वर्ण कारीगर आयोग का गठन हो — अशोक वर्मा

Share

AIJGF के बिहार अध्यक्ष बोले — द्वापर युग से चली आ रही स्वर्णकला उपेक्षित, सरकार दे समुचित सम्मान

केएमपी भारत। पटना
आल इंडिया ज्वेलर्स एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन (AIJGF) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अशोक कुमार वर्मा ने मांग की है कि सरकार को “स्वर्ण कारीगर आयोग” का गठन करना चाहिए, ताकि देशभर के लाखों स्वर्णकार कारीगरों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके। उन्होंने कहा कि जब सरकार मधुबनी पेंटिंग, काष्ठ कला जैसी पारंपरिक कलाओं को प्रोत्साहन दे रही है, तो हजारों वर्षों पुरानी स्वर्णकला को नजरअंदाज करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

- Sponsored -

“द्वापर युग से जीवित है स्वर्णकला, लेकिन कारीगर बेहाल”

अशोक वर्मा ने कहा कि स्वर्णकला कोई आधुनिक कला नहीं है, इसका इतिहास द्वापर युग से जुड़ा हुआ है। आज भी मंदिरों, राजमहलों और ऐतिहासिक धरोहरों में सोने के आभूषणों की बेमिसाल कारीगरी देखी जा सकती है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस कला को जीवित रखने वाले कारीगर बेहद दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं। न तो उनके पास स्वास्थ्य की सुविधा है, न ही आर्थिक सुरक्षा।

“सरकार ने बनाए कई आयोग, पर स्वर्णकारों को कोई स्थान नहीं”

AIJGF अध्यक्ष ने कहा कि सरकार ने अब तक अनेकों आयोग बनाए हैं — पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, कारीगर, अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग — लेकिन कहीं भी स्वर्ण कारीगरों का प्रतिनिधित्व नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यह समुदाय वर्षों से उपेक्षित है और अब समय आ गया है कि उनकी आवाज को भी नीति-निर्धारण में स्थान मिले।

“स्वर्णकार नेताओं ने भी नहीं निभाई जिम्मेदारी”

अशोक वर्मा ने कुछ स्वर्णकार नेताओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जो लोग चुनावों में या राजनीति में पहुंचने के बाद स्वर्णकार समाज के प्रतिनिधि बने, उन्होंने अपने समाज के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए।

सरकार से की मांग — “स्वर्ण कारीगरों को ही मिले आयोग में स्थान”

अशोक वर्मा ने केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि अगर स्वर्ण कारीगर आयोग का गठन होता है, तो उसमें कारीगरों को ही प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, न कि बाहर के लोगों को। उन्होंने कहा कि असल पीड़ा वही समझ सकता है जो उस पेशे से जुड़ा है।

स्वर्णकला को भी मिले GI टैग और प्रोत्साहन

वर्मा ने यह भी सुझाव दिया कि जैसे मधुबनी पेंटिंग और चंपारण कटिंग को GI टैग दिया गया है, वैसे ही स्वर्णकला के विशिष्ट क्षेत्रों को भी स्थानीय पहचान के रूप में GI टैग दिया जाना चाहिए, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह कला और कारीगर दोनों स्थापित हो सकें।

Share this article

Facebook
Twitter X
WhatsApp
Telegram
 
July 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031