जर्जर भवन, बिना वायरिंग की बिजली और अतिक्रमण की मार झेल रहा विद्यालय,
दो कमरे में होती हैं आठ कक्षाओं की पढ़ाई
1971 में स्थापित स्कूल आज भी बदहाली के गर्त में
बिहार डेस्क l केएमपी भारत l पटना
सिवान l
राजकीय एसकेजी मध्य विद्यालय, सिवान की स्थापना वर्ष 1971 में की गई थी। लेकिन आज, 54 साल बीत जाने के बावजूद विद्यालय में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। विद्यालय मात्र दो छोटे-छोटे कमरों में सिमटा हुआ है, जो कि पूरी तरह से जर्जर अवस्था में हैं। इन दो कमरों में ही कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई चल रही है। भवन की हालत इतनी खराब है कि कभी भी हादसा हो सकता है।

बिजली कनेक्शन तो है, लेकिन वायरिंग नहीं
विद्यालय में बिजली का कनेक्शन तो उपलब्ध है, लेकिन पूरी इमारत में कहीं भी वायरिंग नहीं की गई है। गर्मी और उमस में बच्चों को पंखे तक नसीब नहीं होते। रोशनी की भी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है।
स्थानीय लोगों ने सरकारी जमीन पर कर लिया अतिक्रमण
विद्यालय की जमीन पर स्थानीय लोगों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है। प्रधानाध्यापक मोहम्मद एबादुल्लाह अंसारी का कहना है कि स्कूल की जमीन कितनी है और कहां तक फैली हुई है, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। इस संबंध में कई बार विभाग को अवगत कराया गया है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
स्थानाभाव के कारण बच्चों की उपस्थिति भी प्रभावित
विद्यालय में कमरे बेहद सीमित होने के कारण एक साथ सभी बच्चों की पढ़ाई संभव नहीं हो पाती। बुधवार को कुल नामांकित 85 छात्रों में से केवल 45 ही स्कूल आ पाए। बाकी छात्रों को स्थानाभाव के कारण अनुपस्थित रहना पड़ता है। यह स्थिति शिक्षा की गुणवत्ता और निरंतरता दोनों पर गंभीर प्रभाव डाल रही है।
विभागीय अधिकारियों को दिए जा चुके हैं कई आवेदन
प्रधानाध्यापक मोहम्मद एबादुल्लाह अंसारी ने बताया कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (प्राथमिक शिक्षा) एवं समग्र शिक्षा अभियान के अधिकारियों को आवेदन देकर विद्यालय की स्थिति से कई बार अवगत कराया गया है। लेकिन न तो जर्जर भवन की मरम्मत हुई, न ही अतिक्रमण हटाने की कोई प्रक्रिया शुरू की गई।
निष्क्रिय तंत्र बना बच्चों के भविष्य के लिए खतरा
विद्यालय की दुर्दशा और विभागीय लापरवाही ने नौनिहालों के भविष्य को संकट में डाल दिया है। जहां एक ओर सरकार ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘शिक्षा के अधिकार’ जैसी योजनाओं के तहत बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर सच्चाई इस विद्यालय की हालत से साफ झलक रही है।
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से उठ रही उम्मीद की आस
अब उम्मीद की जा रही है कि जिला प्रशासन, शिक्षा विभाग और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे, ताकि विद्यालय को उसके अधिकार मिल सकें और बच्चों को एक सुरक्षित, व्यवस्थित व प्रेरक शैक्षणिक माहौल उपलब्ध कराया जा सके।