बिहार चुनाव डेस्क l केएमपी भारत न्यूज़ l मुजफ्फरपुर
अजय मिलन, शिवहर
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मंगलवार को शिवहर जिले में लोकतंत्र का असली उत्सव देखने को मिला। कभी बुलेट की आवाज़ से गूंजने वाले नक्सली इलाकों में इस बार बैलेट की ताकत ने अपनी छाप छोड़ी। भय और हिंसा की पहचान रहे लक्ष्मीनिया, रामवन रोहुआ, झिटकहिया जैसे इलाकों में मतदाताओं ने बेखौफ होकर वोट डाले।
महिलाओं ने तो इस बार लोकतंत्र के इस पर्व में सबसे आगे बढ़कर भागीदारी निभाई। शाम 6 बजे तक जिले में 68.39% मतदान दर्ज किया गया — जो पिछले कई चुनावों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है।
नक्सलियों के गढ़ में लोकतंत्र की गूंज
कभी पुलिस की वर्दी देखकर सन्नाटे में डूब जाने वाले इलाकों में अब वोटिंग के दिन रौनक दिखी। नक्सल प्रभाव वाले लक्ष्मीनिया, रामवन रोहुआ, झिटकहिया, पिपराही और बिशनपुर गांवों के बूथों पर सुबह से ही मतदाता कतार में दिखाई दिए।
लोगों के चेहरों पर उत्साह और विश्वास झलक रहा था। सुरक्षा बलों की कड़ी निगरानी में मतदान प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही। जिलाधिकारी सह निर्वाचन पदाधिकारी विवेक रंजन मैत्रेय और पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार सिंहा खुद बूथों पर जाकर स्थिति का जायजा लेते रहे।
एडीएम मेघावी, एसडीएम अविनाश कुणाल, एसडीपीओ सुशील कुमार, ट्रैफिक डीएसपी भाई भरत सहित दर्जनों अधिकारियों ने जिलेभर में भ्रमण कर मतदान कार्य को सुचारू रूप से संपन्न कराया।
इस दौरान फर्जी मतदान और गड़बड़ी फैलाने के आरोप में 17 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिससे प्रशासन की तत्परता झलकी।
चौखट और घूंघट से बाहर निकली महिलाएं
इस चुनाव की सबसे बड़ी तस्वीर थी – महिलाओं का बढ़-चढ़कर वोट डालना।
शिवहर में कुल 1,40,739 महिला मतदाता हैं, जिनमें बड़ी संख्या सुबह से ही मतदान केंद्रों पर पहुंची। पहले जहां महिलाएं चौखट और घूंघट में सीमित रहती थीं, वहीं अब वह आत्मविश्वास के साथ लोकतंत्र की सबसे अहम प्रक्रिया में भागीदारी कर रही हैं।
लक्ष्मीनिया की निवासी गुडिया देवी कहती हैं –
“अब वोट देने में कोई डर नहीं लगता। हम लोग खुलकर घर से निकलते हैं और अपने मन से वोट करते हैं।”
वहीं रामवन रोहुआ के राधेश्याम कुमार गुड्डू बताते हैं –
“एक वक्त था जब लोग नक्सली खौफ से वोट देने नहीं निकलते थे। अब माहौल बदल गया है। लाल इलाका अब शांति का इलाका बन चुका है।”
विकास के नाम पर पड़े वोट
इस बार मतदाताओं ने जाति और भय की राजनीति से ऊपर उठकर विकास को मुद्दा बनाया। ग्रामीणों ने कहा कि अब उन्हें सशक्त और स्थिर सरकार चाहिए, जो रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा पर काम करे।
बूथों पर महिलाओं की बातचीत से यह साफ था कि वे बिजली, सड़क, पानी, और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे पर वोट दे रही हैं।
गांवों में लोगों के बीच यह भावना गहराई से दिखी कि “हम अपने बच्चों का भविष्य तय करने वोट डाल रहे हैं।”
शिवहर के ग्रामीणों का कहना था कि बदलते बिहार में अब हिंसा नहीं, विकास की राजनीति चाहिए।
शांतिपूर्ण चुनाव की मिसाल बना शिवहर
पूरा जिला सुरक्षा के घेरे में रहा। 48 संवेदनशील बूथों पर अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात किए गए थे।
जिले के पुलिस-प्रशासन ने हर स्तर पर सतर्कता बरती, जिससे मतदान शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हो सका।
बूथों के बाहर लंबी कतारें, बच्चों की मुस्कान और बुजुर्गों का उत्साह यह बता रहा था कि अब शिवहर में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो चुकी हैं।
2010 की त्रासदी अब बनी इतिहास
यह वही शिवहर है, जिसने वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में नक्सली हिंसा की विभीषिका झेली थी।
चुनाव से ठीक एक दिन पहले नक्सलियों ने झिटकहिया पुल के पास डायनामाइट लगाकर पुलिस जीप को उड़ा दिया था, जिसमें तत्कालीन थाना अध्यक्ष प्रवीण कुमार सिंह सहित 9 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे।
उस घटना के बाद वर्षों तक यहां डर का माहौल रहा, लोग मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंचते थे।
लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है —
जहां कभी गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, वहां अब मतपेटियों की खनक सुनाई देती है।
‘लाल इलाका’ अब ‘शांति क्षेत्र’
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की सक्रियता और आम लोगों की जागरूकता ने इलाके को बदल दिया है।
आज यह क्षेत्र ‘लाल इलाका’ नहीं, बल्कि ‘शांति क्षेत्र’ बन चुका है।
लोग अब अपने अधिकार को पहचान रहे हैं, और लोकतंत्र को अपना हथियार बना चुके हैं।
लक्ष्मीनिया निवासी गुड्डू कहते हैं —
“पहले जहां गोली चलती थी, अब वोट पड़ते हैं। यही असली बदलाव है।”
बदलते बिहार की बदलती तस्वीर
बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में हो रही भारी वोटिंग यह संकेत है कि जनता अब लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा कर रही है।
नक्सलियों के डर और बहिष्कार की राजनीति को जनता ने नकार दिया है।
महिलाएं, युवा, और बुजुर्ग – सबने मिलकर यह संदेश दिया कि “अब विकास ही असली मुद्दा है।






