सीवान : कैसे होगी फैक्ट्री की स्थापना, टुकड़ों में बिक चुकी है पचरुखी चीनी मिल की औद्योगिक जमीन

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अफसर की मिली भगत से तथाकथित फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन बिक्री का आरोप

सीवान में पचरुखी चीनी मिल की जमीन का अस्तित्व खत्म ! सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है यह फैक्ट्री की जमीन

कृष्ण मुरारी पांडेय। सीवान।
एक ओर बिहार सरकार और केंद्र सरकार राज्य से मजदूरों का पलायन रोकने के लिए उद्योगों को फिर से शुरू करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर सीवान के पचरुखी प्रखंड में बंद पड़ी चीनी मिल की जमीन वर्ष 2018 में ही प्राइवेट हाथों में बिक चुकी है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पचरुखी चीनी मिल की करीब 85 बीघा जमीन में से 30-40 बीघा जमीन पर निजी लोगों का कब्जा हो चुका है। आरोप है कि यह सब जाली दस्तावेजों के आधार पर हुआ है इस खेल में तत्कालीन पचरुखी अंचल अधिकारी, सर्किल इंस्पेक्टर और संबंधित कर्मचारी की मिलीभगत का आरोप है।

20 जून को सीवान आ रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

स्थानीयों की मांग: चीनी मिल की जमीन पर दोबारा हो फैक्ट्री की स्थापना

20 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पचरुखी प्रखंड के जसौली खर्ग गांव में विशाल जनसभा को संबोधित करने के लिए आ रहे हैं। इससे पहले स्थानीय लोग अपनी मांग सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं कि पचरुखी चीनी मिल की जमीन पर पुनः शुगर फैक्ट्री लगाई जाए, जिससे न सिर्फ इलाके का विकास हो, बल्कि मजदूरों का पलायन भी रुके।

प्रश्न बड़ा है: इंडस्ट्रियल जमीन कैसे बिक गई निजी हाथों में?

सत्येंद्र मिश्रा, महासचिव, जनता दल यूनाइटेड बिहार प्रदेश, इरशाद अली, शुगर मिल के सलाहकार, गोपालगंज, लालबाबू प्रसाद, जिला अध्यक्ष, औद्योगिक संघ सीवान और मंसूर आलम, अध्यक्ष, औद्योगिक संघ सारण प्रमंडल आदि लोगों का कहना है कि इंडस्ट्री की जमीन न तो बेची जा सकती है, न ही उसका उपयोग प्राइवेट मकसद के लिए हो सकता है। यह जमीन औद्योगिक श्रेणी में आती है और सरकार द्वारा फैक्ट्री के लिए ही अलॉट की जाती है। बावजूद इसके, जमीन को टुकड़ों में अलग-अलग नामों पर बेच दिया गया है।

‘आरोप – पैसा लेकर दाखिल-खारिज का खेल चला है’

स्थानीय लोगों के यह भी आरोप है कि, इस जमीन के दाखिल-खारिज में भारी पैसों का लेन-देन हुआ है। “किस-किसने दाखिल-खारिज कराया, उसकी पूरी रिपोर्ट अंचल कार्यालय और सर्किल इंस्पेक्टर के पास उपलब्ध है, लेकिन कोई जांच नहीं हो रही है।”

सवाल कई, जवाब नहीं

सरकारी इंडस्ट्रियल जमीन के निजी टुकड़े कैसे बने?

क्या सरकार दोषियों पर कोई कार्रवाई करेगी?

स्थानीयों की मांग सरकार से

सत्येंद्र मिश्रा, महासचिव, जनता दल यूनाइटेड बिहार प्रदेश, इरशाद अली, शुगर मिल के सलाहकार गोपालगंज, लालबाबू प्रसाद, जिलाध्यक्ष, औद्योगिक संघ सीवान और मंसूर आलम, अध्यक्ष औद्योगिक संघ सारण प्रमंडल आदि लोगों की मांग है कि

  1. पचरुखी चीनी मिल की जमीन पर फिर से सरकार के द्वारा फैक्ट्री स्थापित की जाए
  2. निजी हाथों से जमीन खाली कराई जाए
  3. पूरे दाखिल-खारिज घोटाले की CBI या EOU से जांच कराई जाए
  4. दोषी अधिकारियों को तत्काल निलंबित कर कठोर कार्रवाई की जाए

“जब सरकार खुद उद्योग लगाने की बात कर रही है, तो फिर सरकार की जमीन निजी हाथों में क्यों बेच दी गई ?”
सुमंत बिहारी शर्मा, जसौली निवासी, प्रोपराइटर बिहार स्पाइसेज

क्या कहते हैं चीनी मिल की जमीन के खरीदार
उधर आईपीसीएल पचरुखी चीनी मिल की जमीन के खरीददारों में शामिल डाॅ. नवल किशोर पाण्डेय, डाॅ. मोहम्मद इसराइल, डाॅ. मोहम्मद मुंतजीर, डाॅ. अमीर रेहाल लारी, गुप्ता एंड ब्रदर्स आदि की माने तो यह जमीन अब ग्रामीणों की नहीं है। नियम कानून के तहत कोर्ट के आदेश पर जमीन की निलामी हुई थी और खरीददारों ने जमीन की निलामी में हिस्सा लिया था। जमीन के खरीददारों की माने तो जनप्रतिनिधि अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वर्षों पुराने मामले को उजागर कर रहे हैं। भोले भाले किसानों को चकमा दे रहे हैं और उन्हें उकसा रहे हैं।

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