सीवान में शराब माफिया बेलगाम, विभाग में संसाधनों की भारी कमी, यूपी सीमा से लगातार हो रही शराब की तस्करी
केएमपी भारत। सीवान |
बिहार में शराबबंदी को सख्ती से लागू कराने की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वही कंधे अब संसाधनों की कमी और नेतृत्वहीनता का बोझ झेल रहे हैं। सीवान जिले में उत्पाद अधीक्षक का अहम पद पिछले नौ महीने से खाली पड़ा है। विभाग फिलहाल एक इंस्पेक्टर के भरोसे चल रहा है, जिन्हें अधीक्षक का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इसके अलावा एक और इंस्पेक्टर उनकी सहायता के लिए तैनात हैं।
उत्पाद विभाग के पास जहां संसाधनों की भारी कमी है, वहीं पदाधिकारियों की भी भारी कमी देखने को मिल रही है। सबसे अहम बात यह है कि जब जिले की भौगोलिक स्थिति शराब तस्करी के लिए संवेदनशील मानी जाती है — खासकर यूपी सीमा से सटे होने के कारण — तब यहां अधीक्षक जैसे वरिष्ठ पद का खाली होना विभाग की गंभीर कार्यक्षमता पर सवाल खड़ा करता है।
तस्करों का नेटवर्क सक्रिय, हर दिन हो रही शराब की बरामदगी
बावजूद इसके कि शराबबंदी लागू है, जिले में चोरी-छुपे शराब का धंधा बदस्तूर जारी है। तस्कर उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से शराब लाकर जिले में खपाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में देसी महुआ शराब भी तैयार कर बेची जा रही है। पुलिस और उत्पाद विभाग की कार्रवाई में लगभग हर दिन किसी न किसी इलाके से शराब की बरामदगी हो रही है।
आंकड़े बताते हैं कि होली के बाद तीन महीनों में जिले में कुल 19,520.595 लीटर शराब जब्त की गई है। यह संख्या न सिर्फ शराब माफिया की सक्रियता को दर्शाती है बल्कि विभाग की सीमित क्षमता की ओर भी इशारा करती है।
जरूरत है स्थायी नेतृत्व और संसाधनों की
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक विभाग को स्थायी अधीक्षक नहीं मिलेगा और पर्याप्त बल व संसाधन नहीं मिलते, तब तक शराबबंदी कानून का सही से पालन कराना मुश्किल होगा। सीमावर्ती जिले में नेतृत्वहीनता तस्करों के हौसले बुलंद करती है।
सीवान जैसे संवेदनशील जिले में उत्पाद अधीक्षक का पद इतने लंबे समय तक खाली रहना एक गंभीर प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है। शराबबंदी को प्रभावी बनाने के लिए विभाग को मजबूत नेतृत्व, पर्याप्त स्टाफ और संसाधन उपलब्ध कराना अब प्राथमिकता बननी चाहिए। वरना शराब माफिया ऐसे ही कानून की धज्जियां उड़ाते रहेंगे।