भाई-बहन के अटूट प्रेम और लोक संस्कृति का प्रतीक पर्व, गीत-संगीत और रीतिरिवाजों के बीच संपन्न हुआ आयोजन
बिहार डेस्क l केएमपी भारत न्यूज़ l भागलपुर
सोनू कुमार भगत, सुपौल
मिथिलांचल की धरती पर लोक संस्कृति और भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक पर्व सामा-चकेवा बुधवार की रात परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड सहित आसपास के इलाकों में इस पर्व की धूम रही। देर रात तक गांवों की गलियों और घर-आंगनों में सामा-चकेवा के गीत गूंजते रहे। महिलाएं मिट्टी से बने सामा, चकेवा, सतभइया, वृंदावन, चुगला, ढोलिया-बजनिया, पंडित और बन तितिर जैसे पात्रों की मूर्तियों को सजा-संवारकर गीतों के बीच विदा करती दिखीं।
चुगलखोर चुगला का मुंह जलाकर दी गई विदाई
परंपरा के अनुसार महिलाओं ने पटुआ से बने चुगला को जलाया और उसका मुंह झुलसाया। यह रस्म समाज को यह संदेश देती है कि चुगलखोरी का अंत सदैव बुरा होता है। इसके साथ ही पर्व के समापन की रस्म पूरी की गई। गुरुवार की सुबह महिलाओं ने सामूहिक रूप से मूर्तियों का विसर्जन किया। कहा जाता है कि जैसे एक बेटी को ससुराल विदा करते समय आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं, उसी तरह सामा की विदाई के समय खाने-पीने की चीजें, कपड़े और बिछावन सहित अन्य वस्तुएं दी जाती हैं।
भाई-बहन के प्रेम का पर्व
इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। परंपरा के तहत भाई अपने घुटने से सामा-चकेवा की मूर्ति तोड़ता है और बहन के साथ केले के थम्ब को सजाकर नदी या पोखर में विसर्जन करता है। इससे पहले बहनें भाई को चूड़ा-गुड़ और लड्डू खिलाकर आशीर्वाद देती हैं। पूर्णिमा की रात सामा-चकेवा की पूजा के बाद बहनों ने सामा और चकेवा को पीला वस्त्र पहनाकर भावपूर्ण विदाई दी।
लोकगीतों की गूंज और सामाजिक संदेश
पूरे पर्व के दौरान महिलाएं और लड़कियां पारंपरिक लोकगीत गाती रहीं — “सामा चले विदेस, चकेवा लेले संदेश…” जैसे गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा। सामा-चकेवा पर्व न केवल आनंद का अवसर देता है, बल्कि सामाजिक चेतना और सीख भी देता है। छातापुर के पंडित राज किशोर गोस्वामी ने बताया कि यह पर्व चुगलखोरी जैसी बुराई के खिलाफ चेतावनी देता है। उन्होंने कहा कि “जिस तरह चुगला का मुंह जलाया जाता है, वैसे ही समाज में चुगली करने वालों को भी अपनी हरकतों का अंजाम भुगतना पड़ता है।”
पूरे क्षेत्र में रही उत्सव की धूम
छातापुर प्रखंड मुख्यालय के अलावा सोहटा, रामपुर, लालपुर, चुन्नी, तिलाठी और बलुआ जैसे गांवों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया गया। ग्रामीण महिलाओं ने सज-धजकर गीत-संगीत के बीच सामा-चकेवा की पूजा की और बच्चों ने जमकर आतिशबाजी का आनंद लिया। चारों ओर लोक संस्कृति की सुगंध और उल्लास का वातावरण बना रहा।
सीमाओं से परे पहुंची मिथिला की परंपरा
पंडित गोस्वामी ने बताया कि पहले यह पर्व सिर्फ मिथिलांचल में मनाया जाता था, लेकिन अब यह देश-विदेश तक फैल चुका है। विदेशों में बसे मिथिला के लोग भी इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मनाते हैं। उन्होंने कहा — “सामा-चकेवा जैसे पर्व सिर्फ खुशी नहीं देते, बल्कि समाज को जोड़ने और रिश्तों की मजबूती का संदेश भी देते हैं।”
मौके पर मौजूद: मीनू देवी, रवि कुमार, सोनू कुमार भगत, रवि रौशन, प्रतिमा देवी सहित बड़ी संख्या में महिलाएं और ग्रामीण उपस्थित थे।






