Munger news : सहरसा निवासी गोपाल झा की बेटी की याद में बना मुंगेर में प्रियंका स्मृति धर्मशाला’

Share

श्रद्धा, सेवा और स्मृति का संगम, हजारों कांवरियों को दे रहा सुकून

बिहार डेस्क, केएमपी भारत, भागलपुर।

संतोष सहाय, मुंगेर। सहरसा जिले के सिहौल गांव के निवासी गोपाल झा ने अपनी दिवंगत बेटी वर्षा झा की स्मृति को एक नई पहचान दी है। डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली बेटी की आकस्मिक मृत्यु के बाद शोक में डूबे पिता ने उसका सपना तो पूरा नहीं कर पाए, लेकिन उसकी याद को समाज सेवा में बदलकर अमर कर दिया। संग्रामपुर के कांवरिया पथ पर उन्होंने ‘प्रियंका स्मृति धर्मशाला’ की स्थापना की है, जो आज हजारों कांवरियों की सेवा में समर्पित है।

बेटी की याद में बना धर्मशाला, कांवरियों का बना सहारा

श्रावणी मेले के दौरान जब कांवरिये सुल्तानगंज से देवघर तक 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकलते हैं, तो संग्रामपुर प्रखंड के गोविंदपुर के पास स्थित यह धर्मशाला उन्हें निःशुल्क विश्राम, भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सुविधाएं देती है। यह स्थान अब केवल विश्राम स्थल नहीं, बल्कि एक भावनात्मक स्मारक बन चुका है।

“मेरी बेटी मेरा अभिमान थी…”

गोपाल झा भावुक होते हुए बताते हैं—
“वर्षा डॉक्टर बनना चाहती थी। बीएससी पार्ट-2 की पढ़ाई कर रही थी, जब 2011 में वह अचानक हमें छोड़कर चली गई। उसके जाने के बाद उसके लिए रखे पैसों से धर्मशाला बनवाने का निर्णय लिया।”
उन्होंने 6 कट्ठा जमीन 6 लाख रुपये में खरीदी और 2014 से निर्माण कार्य शुरू किया। अब तक लगभग 9 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। इस सेवा कार्य में उनकी पत्नी भी साथ दे रही हैं।

समाज सेवा में बेटी के अधूरे सपनों को पंख

गोपाल झा का सपना सिर्फ धर्मशाला तक सीमित नहीं है। वे अपने गांव में भी बेटी के नाम पर एक मंदिर बनवाना चाहते हैं। उनका मानना है कि लोग उनकी बेटी को याद रखें और उसके अधूरे सपनों को समाज सेवा के जरिए पूरा किया जाए।

“मैं चाहता हूं कि बेटी का नाम और उसकी भावना दोनों जिंदा रहें,”— गोपाल झा।

बिहार सरकार ने किया सम्मानित

गोपाल झा के इस सराहनीय प्रयास को बिहार सरकार ने भी सराहा है। उन्हें उनके योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। यह पहल उन तमाम लोगों के लिए एक मिसाल है, जो अपने निजी दुख को सामाजिक उद्देश्य में बदल सकते हैं।

अमर प्रेम की जीवित मिसाल है यह धर्मशाला

‘प्रियंका स्मृति धर्मशाला’ केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि एक पिता की श्रद्धांजलि है अपनी बेटी के प्रति। यह स्थान दर्शाता है कि सच्चा प्रेम शब्दों में नहीं, कर्मों में जीवित रहता है।

यह धर्मशाला नहीं, भावनाओं की तीर्थस्थली है
गोपाल झा ने अपनी बेटी को श्रद्धांजलि देने के लिए जो रास्ता चुना, उसने हजारों कांवरियों को छांव दी और समाज को एक नई दिशा। ‘प्रियंका स्मृति धर्मशाला’ आज श्रद्धा, सेवा और स्मृति का संगम बन चुका है।

Share this article

Facebook
Twitter X
WhatsApp
Telegram
 
September 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
2930