Siwan: सीवान में बाणासुर ने उषा की पूजा के लिए की थी शिवलिंग की स्थापना, द्वापरयुगीन है सोहगरा शिवधाम

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श्रद्धा, आस्था और पौराणिकता का प्रतीक बना सिवान का प्रसिद्ध मंदिर

द्वापर युगीन विशालकाय शिवलिंग, वाणासुर ने की थी स्थापना

बिहार डेस्क l केएमपी भारत l पटना

सिवान। सीवान जिले के गुठनी प्रखंड स्थित सोहगरा शिवधाम देश के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में दैत्यराज वाणासुर ने अपनी पुत्री उषा की शिव भक्ति के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी। यह विशाल शिवलिंग स्वयंभू है, जो इसकी पौराणिकता को और मजबूत करता है।

महाशिवरात्रि और सावन में लगता है लाखों भक्तों का मेला
श्रावण मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। खासतौर पर सावन के प्रत्येक सोमवार को मंदिर में अप्रत्याशित भीड़ उमड़ती है। श्रृंगार आरती की परंपरा महाकाल मंदिर की भस्म आरती से प्रेरित मानी जाती है, हालांकि यहां भस्म की जगह अन्य वस्तुओं से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है।

जनश्रुति: मन्नतें होती हैं पूरी, कुष्ठ रोगी को मिलता है लाभ
लोक विश्वास के अनुसार यहां की गई मन्नतें पूरी होती हैं। ऐसी भी जनश्रुतियां हैं कि कुष्ठ रोगी यहां आकर सोमवार को जलाभिषेक कर तथा शिवलिंग की मिट्टी का लेप लगाने से स्वस्थ हो जाते हैं। साथ ही पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले कई भक्तों को संतान सुख प्राप्त होने की मान्यता भी है।

सम्राट अशोक ने कराया था जीर्णोद्धार, आज भी मिलते हैं पुरातात्विक अवशेष
मंदिर के प्रवेश द्वार पर अशोक स्तंभ के चिन्ह दिखाई देते हैं, जिससे माना जाता है कि सम्राट अशोक ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। मंदिर परिसर और आसपास के गांवों में खुदाई के दौरान प्राचीन मूर्तियां, तोरण द्वार और सिक्के मिलते रहे हैं जो इसकी ऐतिहासिकता को पुष्ट करते हैं।

पर्यटन स्थल बनने की बाट जोह रहा शिवधाम
हालांकि अपनी पौराणिक और ऐतिहासिक महत्ता के बावजूद यह मंदिर अब तक सरकारी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। कई बार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के दावे और जांच-पड़ताल के बावजूद धरातल पर कोई ठोस कार्य नहीं हो सका है।

विसुनपुरा वासियों की भू-परी यात्रा बनी आस्था का प्रतीक
गुठनी के विसुनपुरा गांव के श्रद्धालु पीढ़ियों से भू-परी चलकर सोहगरा शिवधाम पहुंचते हैं। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की सेना इसी गांव में रुकी थी और शिव दर्शन के लिए यहीं से भू-परी चलकर गई थी, जो आज भी परंपरा के रूप में कायम है।

 

 

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